6. तुमुल कोलाहल कलह में ( लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1. ‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है ?
उत्तर - घनघोर कोलाहल, अशांति और कलह के बीच हृदय की बात का कार्य मस्तिष्क को शांति पहुँचाना, उसे आराम देना है। मस्तिष्क जब विचारों के कोलाहल से घिर जाता है तो हृदय की बात उसे आराम देती है। हृदय कोमल भावनाओं का प्रतीक है जो मस्तिष्क को विचारों के कोलाहल से दूर करता है।
2. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है?
उत्तर - छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डुबा रहता है। उषाकाल होते ही सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव-जंतु अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। जगत में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में किया है।
3. चातकी किसके लिए तरसती है ?
उत्तर - चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है और जब स्वाति की बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दु:खी व्यक्ति सुख प्राप्ति की आशा में चातकी के समान उम्मीद बाँधे रहते हैं। कवि के अनुसार, एक-न-एक दिन उनके दु:खों का अंत होता है।
4. बरसात को 'सरस' कहने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर - हम जानते हैं कि बरसात में पानी आकाश से धरती पर गिरकर उसे रसभरी बनाती है। इसके पहले धरती गर्मी की प्रचंडता के कारण पानी के लिए तरसती रहती है। धरती जब पानी से भर जाती है तो पूरी धरती हरी-भरी रसभरी हो जाती है इसलिए बरसात को सरस (रस के साथ) कहा जाता है। यहाँ दूसरा अर्थ यह ध्वनित होता है कि धरती पर जीवन का नया संचार हो जाता है जिससे धरती सरस हो जाती है।
5. काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करें-
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक,
इस झुलसते विश्व-वन की,
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन।
उत्तर - जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुन्दर आत्मगान है। इसकी भाषा उच्च स्तर की है। इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। यह पद्यांश सरल भाषा में न होकर सांकेतिक भाषा में प्रयुक्त है। प्रकृति का रोचक वर्णन इस पद्यांश में किया गया है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। जैसे–विश्व-वन (वनरूपी विश्व)। इसमें अनुप्रास अलंकार का भी प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार के कारण पद्यांश में अद्भुत सौन्दर्य आ गया है। देखिए
पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जा रहा झुक।
6. 'सजल जलजात' का क्या अर्थ है ?
उत्तर - ‘सजल जलजात’ का अर्थ जल भरे (रस भरे) कमल से है। मानव–जीवन आँसुओं का सराबोर है। उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।
कवि का आशय जीवन के मार्मिक क्षणों में "मैं सदा कमल की तरह खिलने वाला हूँ" से है।
7. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर - प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन रहस्य को सरल और सांकेतिक भाषा में सहज ही अभिव्यक्त किया है।
कवि कहना चाहता है कि रे मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कोलाहलपूर्ण जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भीषण कोलाहल कलह विक्षोभ है तथा शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी बात आशा है।
कवि कहता है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन के कार्य-व्यापार से) विकल …होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन-सी होने लगती है, उस समय मैं नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द के रस की बरसात करती हूँ।
कवि के अनुसार जब मन चिर-विषाद में विलीन हो जाता है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ हो, तब मैं उसके लिए उषा-सी ज्योति रेखा हूँ, पुष्प के समान खिला हुआ प्रात:काल हूँ। अर्थात् कवि को दु:ख में भी सुख की अरुण किरणें फूटती दीख पड़ती है।
कवि के अनुसार जीवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहाँ चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम, विषम और ज्वालामय जीवन में मैं (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखानेवाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीवन में मधु-रस की वर्षा होने लगती है।
कवि को अभागा मानव-जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रुका हुआ-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन-झुलस रहा हो ऐसे दु:ख-दग्ध लोगों को आशा वसन्त की रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल-सा खिला देती है।
कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौंरे मँडराते हैं और जो मकरन्द से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।
8. कविता में 'विषाद' और 'व्यथा' का उल्लेख है, यह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।
उत्तर - 'तुमुल कोलाहल कलह में' शीर्षक कविता के द्वितीय पद में 'विषाद' और 'व्यथा' है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वर्तमान कोलाहलपूर्ण स्थिति से क्षुब्ध है। इससे मनुष्य का मन चिर-विषाद मन में घूटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकाररूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र 'विषाद' एवं 'व्यथा' ही परिलक्षित होती है।
9. यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कविता में कही गई बातें उसपर घटित होती हैं? विचार कीजिए और गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान पर एक छोटा निबंध लिखिए।
उत्तर - ‘तुमुल कोलाहल कलह में' छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित “कामायनी” काव्य का एक अंश है। इस अंश में महाकाव्य की नायिका श्रद्धा है, जो वस्तुतः स्वयं कामायनी है। इसमें श्रद्धा आत्मगान प्रस्तुत करती है। यह आत्मगीत नारीमात्र का गीत है। इस गान में श्रद्धा विनम्र स्वाभिमान भरे स्वर में अपना परिचय देती है। अपने सत्ता-सार का व्याख्यान करती है।
इस गीत में कवि ने सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है उसे देखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कविता में कही गई बातें उन पर घटित होती हैं। कवि का यह सोच सही है। नारी वस्तुतः विश्वासपूर्ण आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है। नारी के जीवन से विकासगामी ज्ञान एवं आत्मबोध प्राप्त होता है।
गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान अतुलनीय है। गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब पुरुष का मन कोलाहलपूर्ण वातावरण में चेतनाशून्य हो जाता है और जब वह शान्ति की नींद चाहता है तब नारी मलय पर्वत से चलनेवाली सुगन्धित हवा बनकर पुरुष के चंचल मन को आनन्द प्रदान करती है। जब पुरुष जीवन के चिर-विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है एवं व्यथा के अंधकार में भटकने लगता है तब नारी सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ-प्रदर्शक बनकर पुष्प के समान जीवन को आनन्दित कर देती है।
जब पुरुष के मन में मरुभूमि की ज्वाला धधकती है। तब नारी सरस बरसात बनकर पुरुष जीवन में रस की वर्षा करने लगती है। जब पुरुष सांसारिक जीवन में झुलसने लगता है तब नारी आशा रूपी वसंत की रात के समान सुख की आँचल बन जाती है। इतना ही नहीं, जब मानव, जीवन पुरातन निराशारूपी बादलों से घिर जाता है तब नारी चातकी सरोवर में श्रद्वारूपी एक ऐसा सजल कमल है जिसपर भौरे मँडराते हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका बहुआयामी है।
10. इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौंदर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए।
उत्तर - प्रसादजी के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौंदर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है। जब पुरुष सांसारिक उलझनों से उबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री पुरुष की सहायता करती है।
भाषा की बात
1. पठित कविता के संदर्भ में प्रसाद की काव्यभाषा पर टिप्पणी लिखें।
जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं तथा उनके काव्य में प्रेम और सौंदर्य का चित्रण है। प्रस्तुत कविता में मानव जीवन में प्रेम और सौंदर्य का गुण भी इसमें मिलता है। नारी की गरिमा का वर्णन बड़ा ही सुंदर ढंग से किया गया है। कविता में रस, छंद, अलंकार आदि का प्रयोग हुआ है। इसमें रूपक अलंकार की प्रधानता है।
2. कविता से रूपक अलंकार के उदाहरण चुनें।
उत्तर- जहा गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय वहाँ रूपक अलंकार होता है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ-साथ रहते हैं। यथा- चिर-विषाद विलीन मन की, यहाँ चिर (उपमेय) पर , विषाद (उपमान) का आरोप है। उसी प्रकार निम्न पंक्तियों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है। जहाँ मरु ज्वाला धधकती, इस झुलसते विश्व-वन की, चिर निराशा नीरधर से, मैं सजल जलजात रे मन।
3. निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ-
कुसुम, हृदय, व्यथा, बरसात, विश्व, दिन, रेखा
शब्द = विशेषण
कुसुम = कुसुमित
हृदय = हृदयी
व्यथा = व्यथित
बरसात = बरसाती
विश्व = वैश्विक
दिन = दैनिक
रेखा = रैखिक



oxfordhindi29@gmail.com