कड़बक Chapter-1 का VVI Notes दिया जा रहा है जिसका अध्ययन करके आप अपनी Objectives बेहतर कर सकते है। MCQ Practice Set भी दिया गया है। आप Notes का अध्ययन करने के बाद Test और अपना Result और Answer keys check ✔️ कर सकते है।
कवि : मलिक मुहम्मद जायसी।
जन्म : 15वीं शती उत्तरार्ध, अनुमानतः 1492.
निधन : 1548.
निवास-स्थान : जायस, कब्र अमेठी, उत्तर प्रदेश।
पिता : मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ)।
गुरु : सूफी संत शेख मोहिदी और सैयद अशरफ जहाँगीर।
वृत्ति : आरंभ में जायस में रहते हुए किसानी की, बचपन में ही अनाथ हो गए, साधुऔं-फकीरों के साथ भटकते हुए बचपन बीता, बाद में शेष जीवन फकीरी में बिताए।
व्यक्तित्व : चेचक के कारण रूपहीन तथा बाईं आँख और कान से भी वंचित थे।
मृदुभाषी, मनस्वी और स्वभावतः संत थे।
कृतियाँ : पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा (महरी बाईसी), मसला या मसलानामा (खंड़ित प्रति प्राप्त)।
इनके अतिरिक्त : चंपावत, होलीनामा, इतरावत, आदि कृतियाँ भी उल्लेख में आती हैं।
- मलिक मुहम्मद जायसी प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा की अन्यतम कड़ी हैं।
- मलिक मुहम्मद जायसी 'प्रेम की पीर' के कवि हैं।
- पद्मावत महाकाव्य की भाषा 'अवधी' है।
- जायसी की उज्ज्वल अमर कीर्ति का आधार उनका महान कथाकाव्य 'पद्मावत' है, जिसमें चित्तौड़ नरेश रतनसेन और सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा है। इस प्रेमकथा का त्रिकोण पूरा होता है दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के इस कहानी से जुड़ जाने से। अंशतः ऐतिहासिक आधार वाली इस कहानी का विकास जनश्रुतियों एवं आगे स्वंय कवि की सर्जनात्मक कल्पना द्वारा हुआ है।
- जायसी की इस प्रेम कहानी में प्राणों का प्राणों से, हृदय का हृदय से, मर्म का मर्म से, और जीवन विवेक का जीवन विवेक से ऐसा मानवीय मेल है जो उनके काव्य को बहुत ऊँचा उठा देता है और उसमें व्यापकता और गहराई एक साथ ला देता है।
- यहाँ प्रस्तुत दो कड़बक अलग-अलग संकलित हैं। ये पद्मावत के क्रमशः प्रारंभिक और अंतिम छंदों में से हैं।
- प्रारंभिक छंद स्तुति खंड से लिए गए प्रथम कड़बक में कवि एक विनम्र स्वाभिमान के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधेपन को प्रकृतिप्राप्त दृष्टांतों द्वारा महिमान्वित करते हुए रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।
- अंतिम छंद के उपसंहार खंड से लिए गए द्वितीय कड़बक में कवि अपने काव्य और उसकी कथासृष्टि के बारे में हमें बताते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने इसे रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है जो गाढ़ी प्रीति के नयनजल में भिगोई हुई है। अब न वह राजा रत्नसेन हैं और न वह रूपवती पद्मावती रानी है, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन ही है। इनमें कोई आज नहीं रहा किंतु उनके यश के रूप में कहानी रह गई है। फूल झड़कर नष्ट हो जाता है पर उसकी खुशबू रह जाती है। कवि यह कहना चाहता है कि एक दिन वह भी नहीं रहेगा पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाएगी। जो भी इस कहानी को पढ़ेगा वही उसे दो शब्दों में स्मरण करेगा। कवि अपने कलेजे के खून से इसे रचा है काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यंत सार्थक और बहुमूल्य है।
- पाठक से अनुरोध है कि Test देने से पहले कड़बक Chapter-1 का Notes अवश्य पढ़े फिर Test अभ्यास करें।
कड़बक कविता का अर्थ । Karbak Class 12th
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12th हिन्दी के पद्य भाग के पाठ-1 मलिक मुहम्मद जायसी रचित कड़बक (kadabak kavita Class 12th) का अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे।
कवि- मलिक मुहम्मद जायसी
कवि परिचय
- जायसी निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी शाखा के प्रमुख कवि है।
- जायसी का जन्म सन् 1492 ई० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे।
- उनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ) था
- जायसी कुरुप व काने थे।
- चेचक के कारण उनका चेहरा रूपहीन हो गया था तथा बाईं आँख और कान से वंचित थे।
- उनकी 21 रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा, मसला या मसलानामा आदि प्रमुख हैं।
- जायसी की मृत्यु 1548 के करीब हुई।
- मलिक मुहम्मद जायसी ‘प्रेम के पीर’ के कवि हैं।
इस पाठ में दो कड़बक प्रस्तुत किया गया है। पहला कड़बक पद्मावत के प्रारंभिक छंद तथा दूसरा कड़बक पद्मावत के अंतिम छंद से लिया गया है। प्रथम कड़बक में कवि अपने रूपहीनता और एक आंख के अंधेपन के बारे में कहते हैं। वह रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।
द्वितीय कड़बक में कवि अपने काव्य और उसकी कथासृष्टि के बारे में हमें बताते हैं। वह कहते हैं कि मनुष्य मर जाता हैं पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाती है।
कड़बक (1)
एक नैन कबि मुहमद गुनी । सोई बिमोहा जेइँ कबि सुनी ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि एक नैन के होते हुए भी जायसी गुणी (गुणवान) है। जो भी उनकी काव्य को सुनता है वो मोहित हो जाता है।
चाँद जइस जग बिधि औतारा । दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है। जिसमें कवि कहते हैं कि ईश्वर ने उन्हे चंद्रमा की तरह इस धरती पर उतारा लेकिन जैसे चंद्रमा में कमी (दाग) है वैसे ही कवि में भी फिर भी कवि चंद्रमा की तरह अपने काव्य की प्रकाश पूरे संसार में फैला रहे हैं।
जग सूझा एकइ नैनाहाँ । उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ ।
भावार्थ- स्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि जिस प्रकार अकेला शुक्र नक्षत्रों के बीच उदित है। उसी प्रकार कवि ने भी अपनी एक ही आँख से इस दुनिया को भली-भाँति मझ लिया है।
जौं लहि अंबहि डाभ न होई । तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि जबतक आम में नुकीली डाभ (मंजरी) नहीं होती तबतक उसमें सुगंध नहीं आती।
कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा । तौ अति भएउ असूझ अपारा ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि समुद्र का पानी खारा है इसलिए ही वह असूझ और अपार है।
जौं सुमेरु तिरसूल बिनासा । भा कंचनगिरि लाग अकासा ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि जबतक सुमेरु पर्वत को त्रिशूल से नष्ट नहीं किया गया तबतक वो सोने का नहीं हुआ।
जौं लहि घरी कलंक न परा । काँच होइ नहिं कंचन करा ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि जबतक घरिया (सोना गलाने वाला पात्र) में सोने को गलाया नहीं जाता तबतक वह कच्ची धातु सोना नहीं होती।
एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कइ चाउ ।।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि वे एक नैन के होते हुए भी दर्पण की तरह निर्मल और स्वच्छ भाव वाले हैं और उनकी इसी गुण की वजह से बड़े-बड़े रूपवान लोग उनके चरण पकड़ कर कुछ पाने की इच्छा लिए उनके मुख की तरफ ताका करते हैं।
कड़बक (2)
मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा । सुना जो पेम पीर गा पावा ।
जोरी लाइ रकत कै लेई । गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि अपने काव्य के बारे में बताते हुए कहते हैं कि मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ। मैंने इस काव्य को रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है तथा गाढ़ी प्रीति को आँसुओं के जल में भिंगोया है।
औ मन जानि कबित अस कीन्हा । मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा ।
कहाँ सो रतनसेनि अस राजा । कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा ।
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू । कहँ राघौ जेइँ कीन्ह बखानू ।
कहँ सुरूप पदुमावति रानी । कोइ न रहा जग रही कहानी ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश हैं जिसमें कवि कहते हैं कि मैंने इस काव्य की रचना यह जानकार की है कि मेरे ना रहने के बाद इस संसार में मेरी आखिरी निशानी यही होगी। अब न वह रत्नसेन राजा है और न वह रूपवती पद्मावती, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघव चेतन या अलाउद्दीन है। आज इनमें से कोई भी नहीं है लेकिन यश के रूप में इनकी कहानी रह गई है।
धानि सो पुरुख जस कीरति जासू । फूल मरै पै मरै न बासू ।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि वह पुरुष धन्य है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा इस संसार में है। उनकी कीर्ति उसी तरह रह जाती है जिस प्रकार पुष्प के मुरझा जाने पर भी उसका सुगंध रह जाता है।
केइँ न जगत जस बेंचा केइँ न लीन्ह जस मोल ।
जो यह पढ़ै कहानी हम सँवरै दुइ बोल ।।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियाँ मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के अंश है जिसमें कवि कहते हैं कि इस संसार में यश न तो किसी ने बेचा है और न ही किसी ने खरीदा है। कवि कहते हैं कि जो मेरे कलेजे के खून से रचित इस कहानी को पढ़ेगा वह हमें दो शब्दों में याद रखेगा।
कड़बक का प्रश्न-उत्तर
Kadbak ka questions and answers
1. कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की है?
उत्तर- कवि 'मलिक मुहम्मद जायसी' ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ व निर्मल होता है, उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रतिछाया दिखती है जैसा वह वास्तव में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानते हैं। उनके हृदय में जरा सा भी कृत्रिमता नहीं है। उनके इन निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग उसके चरण पकड़कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते रहते हैं।
2. पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- कवि जायसी ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग अपनी कविता में किया है। कवि नें इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का कार्य किया है।
शब्दकोश के अनुसार
कलंक का अर्थ है - कोयला
काँच का अर्थ है - सोना का कच्चा धातु रूप
कंचन का अर्थ है - शुद्ध सोना
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करता है उसकी प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणी जन की कीर्त्तियों के सामने उनके एकाध-दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं।
कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किये जाने पर सुमेरू-पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों की संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही वह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है।
काँच का अर्थ है- कच्ची धातु
और
कंचन का अर्थ है- सोना।
जब तक घरिया में कच्ची धातु को तपाया नहीं जाता है तब तक वह शुद्ध सोने में नहीं बदलता हैं।
3. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर- पहले कड़बक में जायसी आत्मविश्वास से ओत-प्रोत दिखते हैं। कवि कहते हैं कि मैं एक आँख का हूँ फिर भी गुणवान हूँ। जो भी मेरे काव्य को सुनता है वह मोहित हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार चंद्रमा में दाग है फिर भी वह संसार को अपने प्रकाश से आलोकित करता है। चंद्रमा का काला धब्बा प्रकाश के आगे ओझल हो जाता है। अर्थात् मनुष्य के सद्गुणों के आगे एकाध-दोष भी लोगों के नजरों से ओझल हो ही जाते हैं। कवि अपने इसी आत्मविश्वास के कारण ही 'पद्मावत' जैसे मोहक काव्य की रचना कर सके।
4. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।
उत्तर- कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है। कवि का कहना है कि मैनें जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानी कठिन विरह प्रधान काव्य है।
दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंन लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धांतों से परिपुष्ट किया है। इसका कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्ति चिरस्थाई नहीं होती। अपनी कीर्ति चिरस्थाई करने के लिए ही उन्होंन पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना का आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है।
5. भाव स्पष्ट करें:-
"जौं लहि अंबहि डाभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई।।"
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक (1) से उद्धृत की गई हैं। इस कविता के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभे (कोयली) नहीं निकलती तब तक उसमें सुगंध नहीं आता यानि आम में सुगन्ध आने के लिए डाभयुक्त मंजरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुसबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवक्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है।
6. 'रकत कै लेई' का क्या अर्थ है?
उत्तर- कवि जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद ने अर्थात मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आंसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित मेरी यही निशानी शेष बची रह जायेगी।
7. 'मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा।' - यहाँ कवि ने 'जोरि' शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है?
उत्तर- 'मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा' में 'जोरि' शब्द का प्रयोग कवि ने 'रचकर' के अर्थ में किया है अर्थात मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। कवि यह कहकर इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि मैंने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है।
8. दूसरे कड़बक का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर- दूसरे कड़बक में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उसने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है। परन्तु इस काव्य को जिसनें भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। कवि ने इस कथा को रक्त-रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आंसुओं से भिगोया है। कवि ने इस काव्य की रचना इसलिए की क्योंकि जगत में उसकी यही निशानी शेष बची रह जाएगी। कवि यह चाहता है कि इस कथा को पढ़कर उसे भी दो शब्दों में याद कर लिया जाए।
9. व्याख्या करें-
"धनि सो पुरुख जस कीरति जासू । फूल मरै पै मरै न बासू।।"
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ जायसी लिखित कड़बक के द्वितीय भाग से उद्धत की गयीं हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किंतु उसकी सुगन्ध धरती पर व्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भवन में फहरा जाते हैं। पुष्प सुगन्ध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्तियाँ विनष्ट नहीं होती। बल्कि युग-युगान्तर उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है।
कड़बक भाषा की बात
Kadbak bhasha ki baat
1. निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची लिखें-
नैन : आँख, नेत्र, नयन
आम : आम्र, रसाल, अंब
चंद्रमा : शशि, राकेश, रजनीश, मयंक
रक्त : खून, रूधिर, प्राणद, लोई
राजा : नरेश, सुल्तान, छत्रपति
फूल : पुष्प, कुसुम, सुमन, गुल
2. पहले कड़बक में कवि ने अपने लिए किन उपमानों की चर्चा की है, उन्हें लिखें।
उत्तर - कवि ने अपने लिए निम्नलिखित उपमानों की चर्चा की है-
चाँद, सुक्र तारा, आम, समुद्र, सुमेरू-पर्वत, घरिया, सोना, दर्पण आदि।
3. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें, जैसे- तिरसूल का त्रिशूल ।
नैन = नयन
दरपन = दर्पण
निरमल = निर्मल
पानि = पानी
नखत = नक्षत्र
पेम = प्रेम
रकत = रक्त
कीरति = कीर्ति
पुरुख = पुरुष
4. दोनों कड़बकों के रस और काव्य गुण क्या हैं?
उत्तर- दोनों कड़बकों में रस- 'शांत रस' और काव्य गुण- 'माधुर्य गुण' है।
5. पहले कड़बक से संज्ञा पदों को चुनें।
उत्तर - पहले कड़बक में प्रयुक्त संज्ञा पद निम्नलिखित है-
नैन, कवि, मुहम्मद, चाँद, जग (संसार), बिधि (विधाता), कलंंक (दाग), सूक (सूक्र तारा), नखतन्ह (नक्षत्र), अंबहि (आम), डाभ (मंजरी), सुगंध, समुद्र, पानि (पानी), सुमेरु, तिरसूल (त्रिशूल), कंचनगिरि, अकाश, घरी (घरिया), कलंंक (कोयला),काँच (कच्चा धातु), कंचन (सोना), दरपन (दर्पण), भाउ (भाव), रूपवंत, मुख (मुँह) आदि।
6. दूसरे कड़बक से सर्वनाम पदों को चुनें।
उत्तर- यहि (यह), जो (जिसने), मकु (मेरा/मुझे), जेइँ (जिसने), केंंइ (किसने), सोइ (वही),कहाँ, कोई, जो, हम आदि।
7. जायसी के 'पद्मावत' और तुलसी के 'मानस' दोनों की भाषा अवधी है। पर दोनों महाकवियों के भाषिक संस्कार भिन्न हैं। यह भिन्नता क्या है?
उत्तर- जायसी के 'पद्मावत' और तुलसी के 'मानस' दोनों की भाषा अवधी है। पर दोनों महाकवियों के भाषिक संस्कार भिन्न हैं क्योंकि जायसी निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी शाखा के कवि हैं। जायसी प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। जायसी के 'पद्मावत' अवधी भाषा में है और इसमें प्रेम कथा का वर्णन है इसमें श्रृंगार, शांत आदि रसों का प्रयोग हुआ है।
जबकि 'मानस' जो तुलसीदास रचित है इसकी भाषा भी अवधी है किंतु इसमें भक्ति, वात्सल्य आदि रसों का प्रयोग हुआ है। तुलसीदास सगुण भक्ति धारा के राममार्गी धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। क्योंकि दोनों कवि अलग-अलग भाव धारा के कवि हैं इसलिए दोनों कवियों के भाषा में भिन्नता है।
कड़बक का Objectives/MCQ
Kadbak ka Objectives/MCQ






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