छप्पय कविता का अर्थ । Chappy kavita ka arth
Class 12th Hindi
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12th हिन्दी के पद्य भाग के पाठ-4 नाभादास रचित छप्पय (Navadas ki kavita ka arth Class 12th) का अर्थ सहित व्याख्या को जानेंगे।
कवि परिचय-
लेखक- नाभादास
जन्म : 1570 - 1600 (अनुमानित)
जन्म-स्थान : दक्षिण भारत में
स्थाई निवास : वृंदावन
माता-पिता : शैशव में पिता की मृत्यु और अकाल के कारण माता के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास।
दीक्षा गुरु : स्वामी अग्रदास (अग्रअली)
शिक्षा : गुरु और प्रतिपालक की देख-रेख में स्वाध्याय, सत्संग द्वारा ज्ञानार्जन।
अभिरुचि : लोकभ्रमण, भगवद्भक्ति, काव्य रचना, वैष्णव दर्शन-चिंतन में विशेष रुचि।
कृतियाँ : भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य में)
विशेष : कवि नाभादास की पारिवारिक-सामाजिक पृष्ठभूमि अधिकतर विद्वानों के मुताबिक दलित वर्ग की थी।
'छप्पय' कविता का अर्थ ।Chappy kavita ka arth
छप्पय - (1) कबीर
भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।
कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति भक्ति से विमुख हो जाता है वह अधर्म में लिप्त व्यक्तियों की तरह कार्य करता है। कबीर ने भक्ति के अतिरिक्त अन्य सभी क्रियाओं जैसे योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन सभी को तुच्छ कहा है।
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी ।
पक्षपात नहिं बचन सबहिके हितकी भाषी ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।
नाभादास कहते हैं कि कबीर ने हमेशा हिन्दू और मुसलमान को प्रमाण और सिद्धांत की बात कही है। कबीर ने कभी भी पक्षपात नहीं किया है उन्होंने हमेशा सबके हित की बात कही है।
आरूढ़ दशा ह्वै जगत पै, मुख देखी नाहीं भनी ।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णोश्रम षट दर्शनी ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने कबीरवाणी की विशेषता पर प्रकाश डाला है।
नाभादास कहते हैं कि कबीर ने कभी भी मुख देखी बात नहीं कही अर्थात कभी भी पक्षपातपूर्ण बात नहीं कही। कबीर ने कभी भी कही सुनाई बातों को महत्व नहीं दिया। उन्होंने हमेशा आँखों देखी बातों को ही कहा है। कबीर ने चार वर्ण, चार आश्रम और छ: दर्शन किसी की आनि-कानी नहीं की अर्थात किसी को भी महत्व नहीं दिया।
छप्पय - (2) सूरदास
उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी ।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने सूरदास के विशेषताओं को बताया है।
नाभादास कहते हैं कि सुरदास कि कविताएँ युक्ति, चमत्कार अनुप्रास वर्ण से भरी हई होती है। सूरदास की कविताएँ लयबद्ध और संगीतात्मक होती है। सूरदास अपनी कविता की शुरुआत जिन प्रेम भरी वचनों से करते हैं उसका अंत भी उन्ही वचनों से करते हैं।
प्रतिबिंबित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी ।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने सूरदास के विशेषताओं को बताया है।
नाभदास कहते हैं कि सुरदास की दृष्टि दिव्य है। सूरदास ने अपनी कविताओं में श्री कृष्ण की लीला का वर्णन किया है। सूरदास ने प्रभु के जन्म, कर्म, गुण, रूप सभी को अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर अपने वचनों से प्रकाशित किया है।
विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धरै ।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादास द्वारा रचित भक्तमाल से उद्धृत है जिसके माध्यम से नाभदास ने सूरदास के विशेषताओं को बताया है।
नाभदास कहते हैं कि जो भी व्यक्ति सूरदास द्वारा कही गई भगवान के गुणों को सुनता है उसकी बुद्धि विमल हो जाती है। नाभादास कहते हैं कि ऐसा कोई कवि नहीं है जो सूरदास की कविताओं को सुनकर सिर चालन ना करें अर्थात उनकी बातों में हामी ना भरें।
4. छप्पय (प्रश्न-उत्तर) – नाभादास | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स
Chappy Subjective Question
पद्य-4 | छप्पय (प्रश्न-उत्तर) – नाभादास | कक्षा-12 वीं
4. छप्पय (प्रश्न-उत्तर) – नाभादास | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स
Chappy Subjective Question
पद्य-4 | छप्पय (प्रश्न-उत्तर) – नाभादास | कक्षा-12 वीं
1. नाभादास ने छप्पय में काबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? उनकी क्रम से सूची बनाइए ।
उत्तर- नाभादास ने छप्पय में कबीर की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया है। कबीर जी भक्ति को धर्म मानते हैं और भक्ति से विमुख सबको अधर्म कहते हैं। कबीर जी ने दिखावे की भक्ति को तुच्छ कहा है। कबीर जी सभी को एक मानते हैं, किसी भी तरह से किसी के साथ पक्षपात या भेद-भाव नहीं करते हैं। वे कभी भी मुख देखी की बात नहीं करते हैं।
2. 'मुख देखी नाहीं भनी' का क्या अर्थ है ? कबीर पर यह कैसे लागू होता है ?
उत्तर- मुख देखी नाहीं भनी का अर्थ है मुख देखकर नहीं बोलना, कबीर पर यह लागू होता है क्योंकि कबीर ने कभी मुख देखी बात नहीं कि है। उन्होंने कभी जाति-धर्म को लेकर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है। कवि ने कभी पक्षपात नहीं किया है।
3. सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है ?
उत्तर- सूर के काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है। सूर के जो काव्य है वो चमत्कार और अनुप्रास से भरे होते हैं। इनकी भाषा तुकधारी होती है। सूर जो है वो कृष्ण भक्त हैं और कृष्ण की जितनी भी लीलाये हैं, उसे उन्हें अपने काव्य में दर्शाया है। कृष्ण के जन्म, कर्म, लीला, गुण और रूप आदि को ही सुर अपने कविताओं में लिखते हैं। कवि नाभादास के अनुसार जो भी सूर के काव्य को सुनता है, उनकी बुद्धि विमल हो जाती है।
Chappy Subjective Question
4. अर्थ स्पष्ट करें-
(क) सूर कविता सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ।
उत्तर- नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने इस पंक्ति में सूरदास जी के कविताओ और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि सूरदास की कविताओं को सुनकर कोई भी कभी उनकी बातों को गलत नहीं कह सकता सभी उनकी कविताओं पर अपनी हामी भरते हैं और अपना सिर हाँ में हिलाते हैं।
(ख) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।
उत्तर- नाभादास द्वारा लिखा गया यह छप्पय भक्तमाला से संकलित है। नाभादास ने इस पंक्ति में कबीर जी के व्यक्तित्व और उनके गुणों का उल्लेख किया है। इन पंक्तियों में नाभादास जी कहते हैं कि कबीर जी ने हृदय से किए गए भक्ति को धर्म माना है। जिसमें सच्ची भावना हो, प्रेम हो बाकी सब अधर्म है, दिखावा है।
Chappy Subjective Question
5. 'पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी ।' इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है ?
उत्तर- “पक्षपात नहीं वचन सबही के हित की भाषी” इस पंक्ति में कबीर ने सभी के प्रति समान रहने वाले समानता के गुण का परिचय दिया है। कबीर किसी के साथ पक्षपात नहीं करते हैं। वे सभी के साथ एक समान व्यवहार करते हैं। वह जो कुछ भी बोलते हैं वह सभी के हित के लिए होता है।
6. कविता में तुक का क्या महत्व है ? इन छप्पयों के संदर्भ मे स्पष्ट करें ।
उत्तर- साखी-भाषी, भनी-दर्शनी, अतिभारी-तुकधारी, भासी-परकासी जैसे शब्द एक तुक को धारण किये हुए हैं। कविताओं में तुक का बड़ा महत्व होता है। पंक्तियों के अंत में ऐसे शब्द प्रयोग से कविता एक लय में सुनाई पड़ती हैं। इससे कवि की प्रतिभा का पता चलता है। ये तुक नाभादास की कविता में ही देखने को मिलते हैं, हिंदी साहित्य में नहीं।
Chappy Subjective Question
7. 'कबीर कानि राखी नहीं' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- कबीर कानि राखी से क्या तात्पर्य है। कबीर ने भगवान की भक्ति को ही महत्व दिया है। उनके लिए चार वर्णाश्रम और छः दर्शन का कोई महत्व नहीं है।
Chappy Subjective Question
8. कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया ?
उत्तर- कबीर ने भक्ति को सब से ऊपर सर्वश्रेष्ठ माना है। योग, व्रत, दान को तुच्छ माना है। दिखावे की भक्ति से ज्यादा महत्व मन की भक्ति को दिया है। साफ मन से की गई भक्ति को ही वे सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
छप्पय भाषा की बात । Chappy Bhasha ki baat
छप्पय भाषा की बात । Chappy Bhasha ki baat
1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें-
तुच्छ - महान
हित - अहित
पक्षपात - निष्पक्षता, तटस्थता
गुण - अवगुण, दोष
उक्ति - अनुक्ति
2. वाक्य प्रयोग द्वारा इन शब्दों का लिंग निर्णय करें-
उत्तर -
वचन ( पु० ) - महापुरुषों के वचन हितकारी होते हैं।
मुख्य (वि.) - गांधीजी का मुख्य कार्य हरिजन सेवा था।
यज्ञ (पु.) - राजा जनक के धनुष यज्ञ में अनेक भूप आए थे।
अर्थ (पु) - कविताओं का अर्थ सरल तथा सहज है।
कवि (पु.) - वे एक अच्छे कवि हैं।
बुद्धि (स्त्री.) - न जाने क्यों उनकी बुद्धि मारी गयी।
3. विमल में 'वि' उपसर्ग है। इस उपसर्ग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर -
वि + कारी = विकारी
वि + मुक्त = विमुक्त
वि + नाश = विनाश
वि + शाल = विशाल
वि + शेष = विशेष
वि + दग्ध = विदग्ध
वि + कल = विकल
वि + वश = विवश
4. पठित छप्पय से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें।
उत्तर - अनुप्रास अलंकार -
सो सब
योग यज्ञ
सबदी साखी
कबीर कानि
अस्थिति अतिभारी
अर्थ अद्भूत
दिवि दृष्टि
हृदय हरि
सूर कवित सुनि
कौन कवि
ये सब दोनो छप्पयों में अनुप्रास अलंकार के रूप में प्रयुक्त हैं। अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं।
5. रसना ( जिह्व) का पर्यायवाची शब्द लिखें-
जीभ, जबान, जुबान, जिह्वा, रसज्ञा, रसाला, रसा, रसिका, स्वादेन्द्रिय, रसनेंद्रिय, आदि।
छप्पय कविता का Objectives । MCQ





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