पद्य-5 | कवित्त भावार्थ (सारांश) – भूषण | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स
पद्य-5 | कवित्त भावार्थ (सारांश) – भूषण | कक्षा-12 वीं
कवि परिचय- भूषण
जन्म : 1613
निधन : 1715
जन्म स्थान : तिकवाँपुर, कानपुर, उत्तरप्रदेश।
पिता : रत्नाकर त्रिपाठी।
उपनाम : भूषण, चित्रकूट के सोलंकी राजा रूद्रशाह ने इन्हें 'कवि भूषण' की उपाधि दी थी।
प्रमुख आश्रयदाता : छत्रपति शिवाजी, शिवाजी के पुत्र शाहूजी एवं पन्ना के बुंदेला राजा छत्रसाल।
विशेष : रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी और मतिराम भूषण के भाई के रूप में जाने जाते हैं।
कृतियाँ : शिवराज भूषण (384 छंद में 105 अलंकारों का निरूपण और छत्रपति शिवाजी की प्रशस्ति करनेवाले मुक्तकों का संग्रह)।
शिवा बावनी (52 मुक्तकों में छत्रपति शिवाजी की वीरता का बखान)।
छत्रसाल दशक (10 छंदों में महाराज छत्रसाल की वीरता का यशोगान)।
ये तीन कृतियाँ अप्राप्य हैं : भूषण हजारा, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास।
कुछ स्फुट पद्य भी प्राप्त होते है।
कवित्त का प्रथम खण्ड । kavitt bhavarth (saransh)
इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते हैं, कि जैसे इंद्र का राज यमराज पर है, समुंद्र की अग्नि का राज पानी पर है, रावण और उसके अहंकार पर श्रीराम का राज है। kavitt bhavarth (saransh)
पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते हैं, कि जिस प्रकार से हवाओं का राज बादलों पर है, भगवान शिव का राज रति के पति (कामदेव) पर है। और जिस प्रकार राजा सहस्रबाहु पर भगवान परशुराम का राज है।
दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज है ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते हैं, कि जैसे जंगलों की अग्नि का राज, जंगल कि पेड़-पौधे और वृक्ष की डालियों पर है। जिस प्रकार मृग झुंड पर चिता का राज है, जैसे हाथियों पर शेर का राज होता है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुऐ कहते हैं, कि जिस प्रकार अंधेरे पर उजाले का राज होता है, कंस पर श्री कृष्ण का राज्य है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज इन तुच्छ मलेच्छ वंंश पर है। kavitt bhavarth (saransh)
कवित्त का दूसरा खण्ड । kavitt bhavarth (saransh)
निकसत म्यान ते मयूखैं, प्रलै-भानु कैसी,
फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि जिस प्रकार सूर्य से प्रलयंकारी किरणें निकलती है, ठीक उसी प्रकार वीर छत्रसाल जी की तलवार म्यान से निकलती है। जिस प्रकार प्रकाश अंधकार के समूह को खत्म कर देती है, या उस पर विजय प्राप्त कर लेती है। उसी प्रकार आप की तलवार हाथियों के जाल अर्थात शत्रुओं को खत्म कर देती है। उन पर विजय प्राप्त करती है। kavitt bhavarth (saransh)
लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि आप की तलवार ऐसे चलती है, जैसे नागिन अपने शत्रुओं के गले से लिपट जाती है, और अपने शत्रु को खत्म कर देती है। ऐसा लगता है, जैसे शिव जी को खुश करने के लिए आपकी तलवार मुंडो की माला चढ़ाती हो। kavitt bhavarth (saransh)
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि, हे महा बाहुबली राजन छत्रसाल मैं कहाँ तक आपकी वीरता और प्रलयंकारी तलवार का बखान करूं।
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को ।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि, हे राजन आपकी जो प्रलयंकारी तलवार है, वह शत्रु समूह के सिर को इस प्रकार काटती है, जिस प्रकार देवी का कलिका (काली) रूप ने रक्तबीज का संहार किया था, और ऐसा लगता है जैसे माँ काली को प्रसन्न करने के लिए कलेऊ दे रही हो।
सारांश
व्याख्या- भूषण जी ने अपने इस कवित्त में अपने प्रिय नायकों के बारे में लिखा है। भूषण जी, शिवाजी महाराज के शौर्य एवं शक्ति की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, जैसे इंद्र का राज यमराज पर है। राम का राज रावण पर है। शिव का राज रति के पति पर है। परशुराम का राज सहस्रबाहु पर है। कृष्ण का राज कंस पर है। उजाले का राज अंधेरे पर है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज इन तुच्छ मलेच्छो पर है।
भूषण जी छत्रसाल महाराज के शौर्य एवं वीरता की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, छत्रसाल जी की तलवार जब म्यान से निकलती है, तो लगता है कि, सूर्य से प्रलयंकारी किरणें निकल रही हो। उनकी तलवार उनकी दुश्मनों के गर्दन पर नागिन की तरह लिपट जाती है। जब छत्रसाल जी की तलवार चलती है, तो ऐसा लगता है, जैसे उनकी तलवार शिव जी और काली माॅं को प्रसन्न करने के लिए मुंडो की माला तथा कलेऊ दे रही हो।
पद्य-5 | कवित्त (प्रश्न-उत्तर) – भूषण | कक्षा-12 वीं | हिन्दी 100 मार्क्स
पद्य-5 | कवित्त (प्रश्न-उत्तर) – भूषण | कक्षा-12 वीं
1. शिवा जी की तुलना भूषण ने किन किन से की है ?
उत्तर- शिवा जी की तुलना भूषण जी ने इंद्र, बाड़व (समुन्द्र की आग), भगवान राम, वायु, शिवाजी, परशुराम, दावा (जंगल की आग), चीता, शेर और कृष्ण से की है। Kavitt Subjective Question
2. शिवा जी की तुलना भूषण ने मृगराज से क्यों की है?
उत्तर- जिस प्रकार जंगल का राजा सिंह होता है और मृग पर राज करता है उसी प्रकार शिवाजी का भी राज इन मलेच्छ वंश पर यानि औरंगजेब पर है उनकी वीरता पराक्रम, बल और राज करने की क्षमता को दिखने के लिए शिवा जी की तुलना भूषण ने मृगराज से की है। Kavitt Subjective Question
3. छत्रसाल की तलवार कैसी है? वर्णन कीजिए।
उत्तर- छत्रसाल की तलवार सूर्य की प्रलयंकारी किरणों के समान है। जो अंधकार को कटती हुई शत्रु के गर्दन पर नागिन की तरह चलती है। छत्रसाल की तलवार जब चलती है ऐसा लगता है जैसे वो काल की देवी माँ काली को प्रसन्न करने के लिए कलेवा दे रही हो। Kavitt Subjective Question
4. नीचे लिखे अवतरणों का अर्थ स्पष्ट करे।
(क) लगति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी है। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि, आप की तलवार ऐसे चलती है, जैसे नागिन अपने शत्रुओं के गले से लिपट जाती है, और अपने शत्रु को खत्म कर देती है। ऐसा लगता है, जैसे शिव जी को खुश करने के लिए आपकी तलवार मुंडो की माला चढ़ाती हो।
(ख) प्रतिभट कटक कटीले केते कटि कटि ,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति कल को।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि भूषण जी हैं। वे इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते हैं कि, हे राजन आपकी जो प्रलयंकारी तलवार है, वह शत्रु समूह के सिर को इस प्रकार काटती है, जिस प्रकार देवी का कलिका (काली) रूप ने रक्तबीज का संहार किया था, और ऐसा लगता है जैसे माँ काली को प्रसन्न करने के लिए कलेऊ दे रही हो। Kavitt Subjective Question
5. भूषण रीतिकाल की किस धारा के कवि है, वे अन्य रितिकालीन कवियों से कैसे विशिष्ट है?
उत्तर- भूषण एक रीतिबद्ध आचार्य कवि हैं। उनका अलंकार निरूपण सफल नहीं हो सका। उनका काव्य रूप ही ज्यादा सफल रहा। रीतिकाल मे प्रायः सभी कवि श्रिगांर रस की कविता लिखते थे लेकिन कवि भूषण ने इन सब से हटकर वीर रस को प्रमुखता दी। Kavitt Subjective Question
6. आपके अनुसार दोनों छंदों मे अधिक प्रभावी कोण है और क्यों?
उत्तर- मेरे अनुसार दोनों छंदों मे से ज्यादा प्रभावी प्रथम छंद था क्योंकी इसमें शिवाजी की वीरता और शौर्य को दर्शीया गया है। उनकी बल, साहस और पराक्रम का वर्णन है जो असत्य पर सत्य की विजय को दर्शाती है।
5. कवित्त (भाषा की बात)
5. कवित्त (भाषा की बात)
1. प्रथम छंद में कोन सा रस है? उसका स्थाई भाव क्या है?
उत्तर- प्रथम छंद में वीर रस है तथा उसका स्थाई भाव उत्साह है।
2. प्रथम छंद का काव्य गुण क्या है?
उत्तर- प्रथम छंद का काव्य गुण ओज गुण है।
3. द्वितीय छंद में किस रस की अभिव्यंजना हुई है? उस रस का स्थाई भाव क्या है?
उत्तर- द्वितीय छंद में रौद्र रस की अभिव्यंजना हुई है तथा रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध है।
4. प्रथम छंद में किन अलंकारों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर- प्रथम छंद में अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
5. 'लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनी सी' - इसमें कौन सा अलंकार है?
उत्तर- अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
6. दूसरे छंद से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें।
उत्तर- म्यान ते मयूखैं
तम-तोम
लागति लपकि
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल
लाल छितिपाल छत्रसाल
प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि
कालिका सी किलकि कलेऊ देती काल को।
7. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें -
भानु, रुद्र, चीता, इंद्र, तम, तेज, मृग, काल, कंठ, भट
भानु = सूर्य, रवि, भास्कर, दिवाकर, प्रभाकर
रुद्र = शंकर, त्रिपुरारि, त्रिलोचन, शम्भु, शिव
चीता = बाघ
इंद्र = सुरेन्द्र, देवेन्द्र, सुरपति, देवेश
तम = अंधकार, अँधेरा, तम, तिमिर
तेज = प्रताप, महिमा, शूरता
मृग = हिरण, तीव्रधावक
काल = समय, यमराज, शिव, मुहूर्त
कंठ = गला
भट = योद्धा, रणवीर
8. 'महाबाहु' में 'महा' उपसर्ग है, इस उपसर्ग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
महाबली
महाकाव्य
महात्मा
महाराज
महाकाल
महाशय
9. 'छितिपाल' में 'पाल' प्रत्यय है, इस प्रत्यय से युक्त छह अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
द्वारपाल
राज्यपाल
धर्मपाल
गोपाल
रामपाल
सतपाल
जयपाल
5. कवित्त का Objectives/MCQ





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