कड़बक Chapter-1 का VVI Notes दिया जा रहा है जिसका अध्ययन करके आप अपनी Objectives बेहतर कर सकते है। MCQ Practice Set भी दिया गया है। आप Notes का अध्ययन करने के बाद Test और अपना Result और Answer keys check ✔️ कर सकते है।
कवि : मलिक मुहम्मद जायसी।
जन्म : 15वीं शती उत्तरार्ध, अनुमानतः 1492।
निधन : 1548।
निवास-स्थान : जायस, कब्र अमेठी, उत्तर प्रदेश।
पिता : मलिक शेख ममरेज (मलिक राजे अशरफ)।
गुरु : सूफी संत शेख मोहिदी और सैयद अशरफ जहाँगीर।
वृत्ति : आरंभ में जायस में रहते हुए किसानी की, बचपन में ही अनाथ हो गए, साधुऔं-फकीरों के साथ भटकते हुए बचपन बीता, बाद में शेष जीवन फकीरी में बिताए।
व्यक्तित्व : चेचक के कारण रूपहीन तथा बाईं आँख और कान से भी वंचित थे।
मृदुभाषी, मनस्वी और स्वभावतः संत थे।
कृतियाँ : पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरानामा (महरी बाईसी), मसला या मसलानामा (खंड़ित प्रति प्राप्त)।
इनके अतिरिक्त : चंपावत, होलीनामा, इतरावत, आदि कृतियाँ भी उल्लेख में आती हैं।
- मलिक मुहम्मद जायसी प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा की अन्यतम कड़ी हैं।
- मलिक मुहम्मद जायसी 'प्रेम की पीर' के कवि हैं।
- पद्मावत महाकाव्य की भाषा 'अवधी' है।
- जायसी की उज्ज्वल अमर कीर्ति का आधार उनका महान कथाकाव्य 'पद्मावत' है, जिसमें चित्तौड़ नरेश रतनसेन और सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी पद्मावती की प्रेमकथा है। इस प्रेमकथा का त्रिकोण पूरा होता है दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के इस कहानी से जुड़ जाने से। अंशतः ऐतिहासिक आधार वाली इस कहानी का विकास जनश्रुतियों एवं आगे स्वंय कवि की सर्जनात्मक कल्पना द्वारा हुआ है।
- जायसी की इस प्रेम कहानी में प्राणों का प्राणों से, हृदय का हृदय से, मर्म का मर्म से, और जीवन विवेक का जीवन विवेक से ऐसा मानवीय मेल है जो उनके काव्य को बहुत ऊँचा उठा देता है और उसमें व्यापकता और गहराई एक साथ ला देता है।
- यहाँ प्रस्तुत दो कड़बक अलग-अलग संकलित हैं। ये पद्मावत के क्रमशः प्रारंभिक और अंतिम छंदों में से हैं।
- प्रारंभिक छंद स्तुति खंड से लिए गए प्रथम कड़बक में कवि एक विनम्र स्वाभिमान के साथ अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधेपन को प्रकृतिप्राप्त दृष्टांतों द्वारा महिमान्वित करते हुए रूप से अधिक अपने गुणों की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं।
- अंतिम छंद के उपसंहार खंड से लिए गए द्वितीय कड़बक में कवि अपने काव्य और उसकी कथासृष्टि के बारे में हमें बताते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंन इसे रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है जो गाढ़ी प्रीति के नयनजल में भिगोई हुई है। अब न वह राजा रत्नसेन हैं और न वह रूपवती पद्मावती रानी है, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन ही है। इनमें कोई आज नहीं रहा किंतु उनके यश के रूप में कहानी रह गई है। फूल झड़कर नष्ट हो जाता है पर उसकी खुशबू रह जाती है। कवि यह कहना चाहता है कि एक दिन वह भी नहीं रहेगा पर उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाएगी। जो भी इस कहानी को पढ़ेगा वही उसे दो शब्दों में स्मरण करेगा। कवि का अपने कलेजे के खून से रचे इस काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यंत सार्थक और बहुमूल्य है।
- पाठक से अनुरोध है कि Test देने से पहले कड़बक Chapter-1 का Notes अवश्य पढ़े फिर Test अभ्यास करें।


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