2. सूरदास के पद भावार्थ

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 सूरदास के पद कक्षा 12th भावार्थ | Surdas ke Pad Class 12th 



इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12th हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ 2 सूरदास रचित पद (Surdas ke Pad Class 12th) का अर्थ सहित व्‍याख्‍या को जानेंगे।

कवि- सूरदास 

कवि परिचय-

  • सूरदास का जन्म सन् 1478 ई के आसपास माना जाता है।
  • वे दिल्ली के निकट ‘सीही’ नामक गाँव के रहनेवाले थे।
  • उनके गुरु का नाम महाप्रभु वल्लभाचार्य था।
  • वे पर्यटन, सत्संग, कृष्णभक्ति, और वैराग्य में रुचि लेते थे।
  • जन्म से अंधे थे अथवा बड़े होने पर दोनों आंखे जाती रही।
  • उनकी प्रमुख रचनाओं मे सुरसागर, साहित्यलहरी, राधारसकेलि, सुरसारावाली इत्यादि प्रमुख है।

पाठ परिचय: प्रस्‍तुत पाठ के दोनों पद सुरदास रचित ‘सूरगार‘ से लिया गया है। इन पदों में सूर की काव्‍य और कला से संबंधित विशिष्‍ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। 

प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्‍वर में सोए हुए बालक कृष्‍ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है। 

द्वितीय पद में पिता नंद की गोद में बैठकर बालक श्रीकृष्‍ण को भोजन करते दिखाया गया है।


पद (1)


जागिए ब्रजराज कुँवर,  कँवल-कुसुम फूले ।

कुमुद-वृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। कमल पुष्प खिल गए हैं तथा कुमुद भी बंद हो गए हैं। (कुमुद रात्रि में ही खिलते हैं) भ्रमर कमल-पुष्पों पर मंडाराने लगे हैं।


तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई ।

राँभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई ।

प्रस्तत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। सवेरा होने के प्रतीक मुर्गे बांग देने लगे हैं और पक्षियों व चिड़ियों का कलरव प्रारंभ हो गया है। गोशाला में गाएं बछड़ों के लिए रंभा रही हैं।


बिधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी ।

सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी ।।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। माता यशोदा अपने पुत्र कृष्ण को सुबह होने पर जगा रही है। वह कहती हैं कि हे ब्रज के राजकुमार! अब जाग जाओ। चंद्रमा का प्रकाश मलिन हो गया है अर्थात चाँद छुप गया है तथा सूर्य निकल आया है। नर-नारियाँ प्रात:कालीन गीत गा रहे हैं। अत: हे श्यामसुंदर! अब तुम उठ जाओ। सूरदास कहते हैं कि यशोदा बड़ी मनुहार करके श्रीगोपाल को जगा रही हैं वे कहती हैं कि हे हाथों मे कमल को धारण करने वाले कृष्ण उठो।


पद (2)


जेंवत स्याम नंद की कनियाँ ।

कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे हैं। वे कुछ खाते हैं कुछ धरती पर गिराते हैं तथा इस मनोरम दृश्य को नंद की रानी (माँ यशोदा) देख रही है।


बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगनियाँ ।

डारत, खात, लेत, अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है । उनके खाने के लिए अनगिनत प्रकार के व्यंजन जैसे बेसन के बड़े, बरियाँ इत्यादि बने हुए हैं। वे अपने हाथों से कुछ खाते हैं और कुछ गिराते हैं लेकिन उनकी रुचि केवल दही के पात्र में अत्यधिक होती है।


मिस्री,दधि, माखन मिस्रित करि, मुख नावत छबि धनियाँ ।

आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बानियाँ ।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सुरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है । उन्हें दही अधिक पसंद है। वे मिश्री, दही और मक्खन को मिलाकर अपने मुख में डालते है यह मनोरम दृश्य देखकर माँ यशोदा धन्य हो जाती है। वे खुद भी खाते हैं और कुछ नंद जी के मुंह में भी डालते हैं ये मनोरम छवि का वर्णन करते नहीं बनता।


जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं तिहूँ भुवनियाँ ।

भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ ।।

प्रस्तुत पद वात्सल्य भाव के हैं और सूरसागर से संकलित है जिसमें सूरदास जी मातृ-पितृ स्नेह का भाव प्रदर्शित कर रहे हैं। श्री कृष्ण नंद की गोद में बैठकर भोजन कर रहे हैं। इस दिव्य क्षण का जो आनंद नंद और यशोदा को मिल रहा है यह तीनों लोको में किसी को प्राप्त नहीं हो सकता। भोजन करने के बाद नंद और श्री कृष्ण कुल्ला करते है और सूरदास उनका जूठन मांग रहे है।


 2. पद (सूरदास) प्रश्न-उत्तर





1. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है?

उत्तर- सूरदास रचित 'प्रथम पद' में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है।


2. गायें किस ओर दौड़ पड़ी?

उत्तर- भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं-कमल के फूल खिल उठे है, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ी।


3. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर- प्रथम पद में विषय, वस्तु-चयन, चित्रण, भाषा-शैली व संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष दिखाई पड़ता है। इस पद में दुलार भरे कोमल स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है। कृष्ण को भोर होने के विभिन्न संकेतों जैसे-कमल के फूलों का खिलना, मुर्ग का बांग देना, पक्षियों का चहचहाना, गऊओं का रंभाना, चन्द्रमा का मलिन होना, रवि का प्रकाशित होना आदि के बारे में बताया जा रहा है। इन सबके माध्यम से कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है।


4. पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- महाकवि सूर को बाल-प्रकृति तथा बाल-सुलभ अंतरवृत्तियों के चित्रण की दृष्टि से विश्व साहित्य में बेजोड़ स्वीकार किया गया है। उनके वात्सल्य वर्णन की विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

लाल भगवानदीन लिखते हैं, “सूरदास जी ने बाल-चरित्र का वर्णन में कमाल कर दिया है, यहाँ तक कि हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस विषय में इनकी समता नहीं कर सके हैं। हमें संदेह है कि बालकों की प्रकृति का जितना स्वाभाविक वर्णन सूर ने किया है, उतना किसी अन्य भाषा के कवि ने किया है अथवा नहीं।

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं, “यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। माता संसार का ऐसा पवित्र रहस्य है जिसकी कवि के अतिरिक्त और किसी को व्याख्या करने का अधिकार नहीं है।”

यहाँ प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से ओतप्रोत हैं और ‘सूरसागर’ में हैं। इन पदों में सूर की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। प्रथम पद में बालक कृष्ण को सुबह होने के संकेत देकर जगाना, दूसरे पद में नंद द्वारा गोदी में बैठाकर भोजन कराना वात्सल्य भाव के ही उदाहरण हैं। बालक कृष्ण की क्रियाओं, सौन्दर्य तथा शरारतों का मार्मिक चित्रण इन पदों में है। अतः दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना है।


5. काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करें

(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ।

(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्है माँगत सूर जुठनियाँ।

(ग) आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।

उत्तर- (क) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है। अतः यह पक्ति काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं। यह देख सूरदास जी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूठन नंदजी से माँगते हैं। इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है। कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।


6. कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं?

उत्तर- बालक कृष्ण अपने बाल-सुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जा रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही है। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अनगिनत प्रकार के व्यंजन हैं।

बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगती है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही में विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं


भाषा की बात


1. निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ-

मलिन - राम का मुख क्यों मलिन है ? रस - सूरदासजी वात्सल्य रस के अनन्य कवि हैं। भोजन - दूषित भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रुचि - ज्योति की रुचि पढ़ाई में नहीं है । छवि - हमें अपनी छवि स्वच्छ रखनी चाहिए । दही - दही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है । माखन - बालक कृष्ण को यशोदा माता प्यार से माखनचोर कहती थीं।

2. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची दें-

धरनि - वसुधा, धरती, भू, पृथ्वी रवि - दिनकर, दिवाकर, प्रभाकर, भास्कर अंबुज - सरोज, पंकज, जलज, कमल, नीरज कमल - अरविन्द, पंकज, जलज, सरोज

3. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें-

धरनि - धरणी बिधु - विधु प्रकास - प्रकाश गो- गौ कँवल - कमल स्याम - श्याम बनराई - वनराज


4. निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखें-

मलिन- स्वच्छ नर- नारी संकुचित - विस्तृत धरणी - आकाश विधु - सूर्य


5. पठित पदों के आधार पर सूर की भाषिक विशेषताओं को लिखिए।

उत्तर- सूरदासजी ब्रजभाषा के प्रारंभिक कवियों में एक हैं तथापि उनकी कविता की भाषा इतनी विकसित, प्रौढ़ और समृद्ध है कि अपने वैभव और गांभीर्य से सबको चकित कर देते। वह काल ब्रजभाषा के उत्कर्ष का था। अवधी, मैथिली, ब्रज, खड़ी बोली, राजस्थानी आदि भाषाओं का साहित्यिक भाषा के रूप में मध्यकाल में विकास हुआ। ब्रजभाषा में अंतर्निहित लालित्य, माधुर्य तथा कोमलता के कारण इसे अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। इसकी विशेषता के कारण कई सदियों (एक लम्बी अवधि) तक ब्रजभाषा हिन्दी क्षेत्र की प्रमुख काव्य भाषा रही। सूरदास के वाक्य के तीन प्रधान विषय हैं- विनयभक्ति, वात्सल्य और प्रेम गार उनके काव्यों में जीवन का व्यापक और बहुरूपी विस्तार नहीं है, किन्तु भावों की गहराई और तल्लीनता में व्यापकता और विस्तार पीछे छूट जाते हैं। वात्सल्य भाव की बहुलता से पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो जाता है। उनके पदों में वात्सल्य, प्रेम, वेदना आदि का मिश्रित आनन्द और लालित्य का पारावार उमड़ता है।


6. विग्रह करते हुए समास बताएँ-

नंद-जसोदा - नंद और जसोदा - द्वंद समास

ब्रजराज - ब्रज के राजा - संबंध तत्पुरुष समास

खग रोर - खग का रोर - संबंध तत्पुरुष समास

अंबुजकरधारी - कर में अंबुज धारण करनेवाला अर्थात कृष्ण - बहुब्रीहि समास


सूरदास के पद का Objectives । Surdas ke Pad ka Objectives



सूरदास के पद का Objectives । Surdas ke Pad ka Objectives


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