कक्षा 12वीं हिन्दी पाठ-3 तुलसीदास के पद | Tulsidas ke pad class 12th Hindi
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12वीं हिन्दी के पद्य भाग के पाठ तीन तुलसीदास के 'पद' (Tulsidas ke pad class 12th Hindi) के व्याख्या सारांश सहित जानेंगे।
Bihar Board Class 12 Hindi Chapter 3 तुलसीदास के 'पद'
कवि-परिचय
कवि का नाम- तुलसीदास
जन्म : 1543
निधन : 1623
जन्मस्थान : राजापुर, बाँदा, उत्तरप्रदेश
मूल-नाम : रामबोला
माता-पिता : हुलसी और आत्माराम दुबे
दीक्षा गुरु : नरहरि दास, सुकरखेत के वासी, गुरू ने विद्यारंभ करवाया।
शिक्षा गुरु : शेष सनातन, काशी के विद्वान।
शिक्षा : चारों वेद, षड्दर्शन, इतिहास, पुराण, स्मृतियाँ, काव्य आदि की शिक्षा काशी में पंद्रह वर्षों तक प्राप्त की।
स्थाई निवास : काशी
मित्र : अब्दुर्रहीम खानखाना, महाराजा मानसिंह, नाभादास, टोडरमल, मधुसूदन सरस्वती,
कृतियाँ : रामलला नहछू, वैराग्य संदीपिनी, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामज्ञाप्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, श्री कृष्ण गीतावली, विनय पत्रिका, रामचरितमानस
गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के मध्यकालीन उत्तर भारत भक्ति काव्य की सगुण भक्तिधारा की रामभक्ति शाखा के प्रधान कवि है।
पद (1)
कबहुँक अंब अवसर पाइ ।
मेरिओ सुधि द्याइबी कछु करून-कथा चलाइ ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास सीता को माँ कहकर संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे माँ कभी उचित अवसर पा कर आप प्रभु से कोई कारुणिक प्रसंग छेड़ कर मेरी भी याद प्रभु को दिला देना।
दीन, सब अँगहीन, छीन, मलीन, अघी अघाइ।
नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास सीता को माँ कहकर संबोधित करते हए कहते हैं कि हे माँ प्रभू को कहना कि आपकी दासी का दास बहुत ही दीन-दशा में है। उसके अंग भी अब ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। वह बहुत दुर्बल है तथा स्वच्छ भी नहीं रहता। वह पूर्णतः पापों में लिप्त है और आपके नाम का स्मरण करता हुआ किसी प्रकार से अपनी उदर पूर्ति करता है।
बझिहैं 'सो है कौन' कहिबी नाम दसा जनाइ।
सुनत रामकृपालु के मेरी बिगारिऔ बनि जाइ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास सीता को माँ कहकर संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे माँ जब आप मेरी बात प्रभु से करेंगी तो वो पूछेंगे कि आप किसकी बात कर रही हैं। तब आप प्रभू को मेरा नाम और मेरी दशा बता देना क्योंकि अगर मेरी स्थिति प्रभु को पता चल गई तो मेरे बिगड़े हुए काम भी बन जाएंगे।
जानकी जगजननि जन की किए बचन-सहाइ ।
तरै तुलसीदास भव तव-नाथ-गुन-गन गाइ ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है। इसके कवि तुलसीदास जी हैं। यह विनय पत्रिका से संकलित है। इस पंक्ति में कवि तुलसीदास कहते हैं कि हे जगत की जननी माँ जानकी अब आपके वचन ही मेरी सहायता कर सकते है। मेरी सहायता कीजिए माँ, मैं आपका हमेशा आभारी रहूँगा। ये तुलसीदास सदा आपका गुण गायेगा।
पद (2)
द्वार हौं भोर ही को आजु ।
रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन करते हए कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं आपके द्वार पर भोर से(सुबह से) ही बैठा हूँ और भीख मांगने वाले की तरह रिरिहा(गिड़गिड़ा) रहा हूँ । हे प्रभु ! मुझे आपसे बहत कुछ नहीं चाहिए मैं आपकी कृपा का एक कौर(निवाला) ही मांग रहा हूँ।
कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! इस कलयुग मे भयंकर अकाल पड़ा है और जो भी मोक्ष को प्राप्त करने का मार्ग है वो पापों से भरा हुआ है। प्रत्येक चीज में दुर्व्यस्थता ही दिखाई पड़ रही है । हे प्रभु मैं एक नीच जीव हूँ जिसकी अभिलाषाएं ऊँची है जो मुझे उसी प्रकार कष्ट देती है जैसे कोढ़ में खाज दुख दिया करती है। अतः हे प्रभु मेरी विनती स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा का मात्र एक निवाला प्रदान करें।
हहरि हिय में सदय बूझयो जाइ साधु-समाजु ।
मोहुसे कहुँ कतहुँ कोउ, तिन्ह कहयो कोसलराजु ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! हृदय में अत्यंत पीड़ा के साथ मैंने दयाशील साधू समाज से यह बात पूछा कि क्या मेरे जैसे पापी, दरिद्र के लिए कोई शरण है और उन्होंने दया के सागर श्रीराम का नाम बताया।
दीनता-दारिद दलै को कृपाबारिधि बाजु ।
दानि दसरथरायके, तू बानइत सिरताजु ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई हैं जिसमें महाकवि तुलसीदास अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे कृपासिंधु ! आपके अतिरिक्त कौन मेरी दीनता और दरिद्रता को दूर कर सकता है। हे दशरथ पुत्र श्रीराम ! आपके द्वारा ही मेरी बात बन सकती है।
जनमको भूखो भिखारी हौं गरीबनिवाजु ।
पेट भरि तलसिहि जेंवाइय भगति-सुधा सुनाजु ।।
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे पाठ्यपुस्तक दिंगत भाग-2 के पद से ली गई है जिसमें महाकवि तुलसीदास अपनी दीन-हीन अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे कृपासिन्धु ! हे गरीबों का दुख दूर करने वाले, मैं जन्म से ही भूखा भिखारी हूँ और आप दीनों के नाथ हैं। तुलसी जैसा भूखा भक्त आपके द्वार पर बैठा है मुझे अपनी भक्तिरूपी शुधा पिलाकर मेरे ज्ञानरूपी भूख को शांत करें।
3. तुलसीदास के पद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
1. 'कबहुँक अंब अवसर पाई।' यहाँ 'अंंब' संबोधन किसके लिए है? इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में 'अंब' का संबोधन माँ सीता के लिए किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने सीताजी को सम्मानसूचक शब्द 'अंब' के द्वारा उनके प्रति सम्मान की भावना प्रदर्शित की है।
2. प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है, लिखिए।
उत्तर- प्रथम पद में तुलसीदास ने अपने विषय में हीनभाव प्रकट किया है। अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वह दीन, हीन, दुर्बल, मलिन तथा असहाय व्यक्ति हैं। वे अनेकों अवगुणों से युक्त हैं। 'अंगहीन' से उनका आशय संभवतः 'असहाय' होने से है।
3. अर्थ स्पष्ट करें-
(क) नाम लै भरै उदर एक प्रभु-दासी-दास कहाइ।
(ख) कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु।
नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु॥
(ग) पेट भरि तुलसिहि जेंवाइय भगति-सुधा सुनाजु।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश का अर्थ है- तुलसीदास भगवान राम का गुणगान करके, उनकी कथा कहकर जीवन-यापन कर रहे हैं, अर्थात् सीता माता का सेवक बनकर राम कथा द्वारा परिवार का भरण-पोषण हो रहा है।
(ख) कलियुग का भीषण बुरा समय असह्य है तथा पूर्णरूपेण बुरी तरह अव्यवस्थित और दुर्गतिग्रस्त है। निम्न कोटि का व्यक्ति होकर बड़ी-बड़ी (ऊँची) बातें सोचना कोढ़ में खाज के समान है अर्थात् 'छोटे मुंह बड़ी बात' कोढ़ में खुजली के समान है।
(ग) कवि को भक्ति-सुधा रूपी अच्छा भोजन करा कर उसका पेट भरें। इसमें गरीबों के मालिक श्रीराम से प्रार्थना की गयी है उन्हीं के भक्त तुलसीदास के द्वारा।
4. तुलसी सीता से कैसी सहायता मांगते हैं?
उत्तर- तुलसीदास माँ सीता से भवसागर पार कराने वाले श्रीराम को गुणगान करते हुए मुक्ति-प्राप्ति की सहायता की याचना करते हैं। वे कहते है कि हे जगत की जननी अपने वचन द्वारा मेरी सहायता कीजिए।
5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं?
उत्तर- ऐसा संभवतः तुलसीदास इसलिए चाहते थे क्योंकि-
उनको अपनी बातें स्वयं राम के समक्ष रखने का साहस नहीं हो रहा होगा, वे संकोच का अनुभव कर रहे होंगे।
सीताजी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि किसी व्यक्ति से उनकी पत्नी के माध्यम से कार्य करवाना अधिक आसान होता है।
तुलसी ने सीताजी को माँ माना है तथा पूरे रामचरितमानस में अनेकों बार माँ कहकर ही संबोधित किया है। अत: माता सीता द्वारा अपनी बातें राम के समक्ष रखना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा।
6. राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का कारण क्या है?
उत्तर- गोस्वामी तुलसीदास राम की भक्ति में इतना अधिक मग्न थे कि वह पूरे जगत को राममय पाते थे-"सिवा राममय सब जग जानि" यह उनका मूलमंत्र था। अतः उनका यह दृढ़ विश्वास था कि राम दरबार पहुँचते ही उनकी बिगड़ी बातें बन जाएँगे। अर्थात राम ज्योंही उनकी बातों को जान जाएँगे, उनकी समस्याओं एवं कष्टों से परिचित होंगे, वे इसका समाधान कर देंगे। उनकी बिगड़ी हुई बातें बन जाएँगे।
7. दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है, लिखिए।
उत्तर- दूसरे पद में तुलसीदास ने अपना परिचय बड़ी-बड़ी (ऊँची) बातें करनेवाला अधम (क्षुद्र जीव) कहा है। छोटा मुँह बड़ी बात (बड़बोला) करनेवाला व्यक्ति के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया है, जो कोढ़ में खाज (खुजली) की तरह है।
8. दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है।
उत्तर- दोनों पदों में भक्ति-रस की व्यंजना हुई है। तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगत जननी सीता की स्तुति द्वारा भक्तिभाव की अभिव्यक्ति इन पदों में की है।
9. तुलसी के हृदय में किसका डर है?
उत्तर- तुलसी की दयनीय अवस्था में उनके सगे-सम्बन्धियों आदि किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की। उनके हृदय में इसका संताप था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें संतों की शरण में जाना पड़ा और उन्हें वहाँ इसका आश्वासन भी मिला कि श्रीराम की शरण में जाने से सब संकट दूर हो जाते हैं।
10. राम स्वभाव से कैसे हैं? पंठित पदों के आधार पर बताइए।
उत्तर- प्रस्तुत पदों में राम के लिए संत तुलसीदासजी ने कई शब्दों का प्रयोग किया है जिससे राम के चारित्रिक गुणों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। श्रीराम को कवि ने कृपालु कहा है। श्रीराम का व्यक्तित्व जन-जीवन के लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। प्रस्तुत पदों में तुलसी ने राम की कल्पना मानव और मानवेतर दो रूपों में की है। राम के कुछ चरित्र प्रगट रूप में और कुछ चरित्र गुप्त रूप में दृष्टिगत होता है। उपर्युक्त पदों में परब्रह्म राम ओर दाशरथि राम के व्यक्तित्व की व्याख्या की गयी है। राम में सर्वश्रेष्ठ मानव गुण है। राम स्वभाव से ही उदार और भक्तवत्सल है। दासरथि राम को दानी के रूप में तुलसीदासजी ने चित्रण किया है। पहली कविता में प्रभु, बिगड़ा काम बनाने वाले, कृपाबारिधि आदि शब्द श्रीराम के लिए आए हैं। इन शब्दों द्वारा परब्रह्म अलौकिक प्रतिभा संपन्न श्रीराम की चर्चा है।
दूसरी कविता में कोसलराज, दाशरथि, राम, गरीब निवाॅजू आदि शब्द श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुए हैं। अतः, उपर्युक्त पद्यांशों के आधार पर हम श्रीराम के दोनों रूपों का दर्शन पाते हैं। वे दीनबन्धु, कृपालु, गरीबों के त्राता के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। दूसरी ओर कोसलराजा दशरथ राज आदि शब्द मानव राम के लिए प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार राम के व्यक्तित्व में भक्तवत्सलता, शरणागत वत्सलता, दयालुता अमित ऐश्वर्य वाला, अलौकिकशील और अलौकिक सौन्दर्यवाला के रूप में हुआ है।
11. तुलसी को किस वस्तु की भूख है?
उत्तर- तुलसीजी गरीबों के त्राता भगवान श्रीराम से कहते हैं कि हे प्रभु मैं आपकी भक्ति का भूखा जनम-जनम से हूँ। मुझे भक्तिमयी अमृत का पान कराकर क्षुधा की तृप्ति कराइए।
12. पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांशों में कवि तुलसीदास ने अपनी दीनता तथा दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए माँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरणों में विनय से युक्त प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं को प्रभु की दासी का दास कहते हैं। नाम ले भरै उदर द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम के नाम-जप ही उनके लिए सब कुछ है। नाम-जप से उनकी लौकिक भूख भी मिट जाती है। संत तुलसीदास नें अपने को अनाथ कहते हुए कहते हैं कि मेरी व्यथा गरीबी की चिन्ता श्रीराम के सिवा दूसरा कौन बुझेगा? श्रीराम ही एकमात्र कृपालु हैं जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे।
माँ सीता से तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि हे माँ आप मुझे अपने वचन द्वारा सहायता कीजिए यानि आशीर्वाद दीजिए कि मैं भवसागर पार करनेवाले श्रीराम का गुणगान सदैव करता रहूँ। दूसरे पद्यांश में कवि अत्यन्त ही भावुक होकर प्रभु से विनती करता है कि हे प्रभु आपके सिवा मेरा दूसरा कौन है जो मेरी सुध लेगा। मैं तो जनम-जनम का आपकी भक्ति का भूखा हूँ। मैं तो दीन-हीन दरिद्र हूँ। मेरी दयनीय अवस्था पर करुणा कीजिए ताकि आपकी भक्ति में सदैव तल्लीन रह सकूँ।
13. ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु।’– यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- प्रस्तुत काव्य पंक्ति तुलसी के दूसरे पद से ली गयी हैं। इसमें ‘और’ का प्रयोग दूसरा कुछ नहीं के अर्थ में हुआ है। लेकिन भाव राम भक्ति से है।
तुलसीदास स्वयं को कहते हैं कि हे श्रीरामचन्द्रजी। आज सबेरे से ही मैं आपके दरवाजे पर अड़ा बैठा हूँ। रें-रें करके रट रहा हूँ, गिड़गिड़ा रहा हूँ, मुझे और कुछ नहीं चाहिए एक कौर (टुकड़े) से ही काम बन जाएगा। यानि आपकी जरा-सी कृपा दृष्टि से मेरा सारा काम पूर्ण हो जाएगा। यानि जीवन सार्थक हो जाएगा। यहाँ और का प्रयोग भक्ति के लिए प्रभु-कृपा जरूर है के संदर्भ में हुआ है।
14. दूसरे पद में तुलसी ने ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर- तुलसी ने अपने दूसरे पद में दीनता और दरिद्रता दोनों शब्दों का प्रयोग किया है। शब्दकोश के अनुसार दोनों शब्दों के अर्थ एक-दूसरे से सामान्य तौर पर मिलते-जुलते हैं, किन्तु प्रयोग और कोशीय आधार पर दोनों में भिन्नता है।।
1. दीनता का शाब्दिक अर्थ है- निर्धनता, पराधनीता, हीनता, दयनीयता आदि।
2. दरिद्रता का शाब्दिक अर्थ है- अपवित्रता, अरूचि, अशुद्धता, दरिद्रता और घोर गरीबी में जीनेवाला। निर्धनता के कारण समाज में उसे प्रतिष्ठा नहीं मिलती है इससे भी उसे अपवित्र माना जाता है।
3. दरिद्र दुर्भिक्ष और अकाल के लिए भी प्रयुक्त होता है।
संभव है तुलसीदासजी अपने दीन-हीन दशा के कारण अपने को अशुद्ध/अरुचि के रूप में देखते हैं। एक का अर्थ गरीबी, बेकारी, बेबसी के लिए और दूसरे का प्रयोग अशुद्धि, अपवित्रता के लिए हुआ हो। तीसरी बात भी है- तुलसीदास जी जब इस कविता की रचना कर रहे थे तो उस समय भारत में भयंकर अकाल पड़ा था जिसके कारण पूरा देश घोर गरीबी, भूखमरी का शिकार हो गया था। हो सकता है कि अकाल के लिए भी प्रयोग किया हो। कवि अपने भावों के पुष्टीकरण के लिए शब्दों के प्रयोग में चतुराई तो दिखाते ही हैं।
15. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- प्रथम पद में तुलसीदास सीता जी को माँ कहकर संबोधित करते हैं, वे कहते हैं कि माँ ! जब कभी आप उचित अवसर समझें तब कोई करुण प्रसंग चलाकर श्रीराम की दया मन:स्थिति में मेरी याद दिलाने की कृपा करना। तुलसीदास अपनी दयनीय स्थिति श्रीराम को बताकर अपनी बिगड़ी बात बनाना चाहते हैं। अर्थात वे अपने दुर्दिनों का नाश कराना चाहते हैं। वे माँ से अनुनय विनय करते हैं कि वे ही उन्हें इस भवसागर से पार करा सकती हैं। वे कहते हैं कि हे माँ.! मेरा उद्धार तभी होगा जब आप श्रीराम से मेरे लिए अनुनय विनय करके मेरा उद्धार करवाओगी। उन्हें श्रीराम पर अटूट श्रद्धा तथा विश्वास है।
तुलसीदास के पद भाषा की बात
1. दोनों पदों से सर्वनाम पद चुनें।
उत्तर- मेेरियो, सो, कौन, मेरी, तव, हौं, मोहुसे, कोउ, तिन्ह, तू
2. दूसरे पद से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें।
उत्तर-
- अंब अवसर
- कछु करुन-कथा
- अघी अघाइ
- दासी-दास
- बिगारिऔ बनि
- जानकी जगजननि जन
- तरै तुलसीदास
- नाथ-गुन-गन गाइ
- रटत रिरिहा
- आरि और
- कलि कराल
- दुकाल दारुन
- कुभाँति कुसाजु
- नीच जन मन
- हहरि हिय
- साधु-समाजु
- कहुँ कतहुँ कोउ
- कहयो कोसलराजु
- दीनता-दारिद्र दलै
- दानि दसरथरायके
- भूखो भिखारी
- सुधा सुनाजु
3. पठित अंशों से विदेशज शब्दों को चुनें।
उत्तर- द्याइबी, रिरिहा, आरि, तव, कहिबी
4. पठित पद किस भाषा में हैं?
उत्तर- पठित पद अवधी भाषा में हैं।
5. 'कोढ़ में खाज होना' का क्या अर्थ है?
उत्तर- कोढ़ में खाज होना का अर्थ दुखी व्यक्ति को और अधिक दुःख देना।
6. निम्नलिखित शब्दों का खड़ी बोली रूप लिखें-
जनमको, हौं, तुलसिहि, भगति, मोहुसे, कहुँ, कतहुँ
उत्तर-
- जनमको - जन्म से
- तुलसिहि - तुलसी की
- भगति - भक्ति
- मोहुसे - मुझसे
- कहुँ - कहना
- कतहुँ - कहीं
तुलसीदास के पद का Objectives। Tulsidas ke pad ka Objectives
तुलसीदास के पद का Objectives। Tulsidas ke pad ka Objectives



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